Sunday, August 19, 2012

बागी बलिया

दूसरी मान्यता के अनुसार रामायण महाकाव्य के रचयिता महर्षि बाल्मीकी का यहां आश्रम होने के कारण इसका नाम बाल्मीकी आश्रम हुआ ।
जो बाद मे बलिया के नाम से जाना जाने लगा । महर्षि बाल्मीकी का आश्रम इसी भू - भाग पर था । अयोध्या के राजा श्री राम की पत्नी सीता ने इसी आश्रम मे अपने जुड़वा पुत्रों कुश - लव को जन्म दिया , इसी जंगल मे उनका लालन - पालन हुआ । इस बात के भी अनेक प्रमाण यहां मौजूद है । पहली बात महर्षि
 बाल्मीकी का आश्रम तमसा छोटी सरयू के तट पर था । थोड़ी ही दूरी पर गंगा नदी बहती थी , ऐसा उल्लेख उन्होने स्वयं अपने ग्रन्थ बाल्मीकीय रामायण मे किया है । इसके अतिरिक्त ब्रिटिश इतिहासकार मि0 नेविल ने 1905के बलिया गजेटियर में यहां बाल्मीकी आश्रम होने की बात लिखा है । एक स्थलीय साक्ष्य आज भी यहां मौजूद है ,बलिया नगर से पूरब बिगही - बहुआरा के पास पंचेव गांव मे एक छोटे से प्राचीन मन्दिर में काले पत्थर की सीता जी की प्रतिमा अपने दोनों पुत्रों कुश - लव के साथ स्थापित है । यहां पर सीता नवमी को एक छोटा ग्रामीण मेला आज भी लगता है ।
तीसरी मान्यता है कि इसका नामकरण आनव राजा बलि की राजधानी होने के कारण बलिया पड़ा । यह राजा बलि आनव राजा थे ।इनके कालखण्ड और दानवीर दैत्यराज राजा बलि के कालखण्ड मे हजारो वर्षो का अन्तर है । इस चन्द्रवंशी आनव राजा बलि के पांच पुत्र अंग , बंग आदि थे ।
एक मान्यता यह भी है कि बौद्धकाल मे यह भू-भाग बुलियों के अधिकार मे था इन बुलि राजाओ के नाम पर इसका नाम बलिया पड़ा ।
इन अनेक मान्यताओ की अगर कालखण्डों के अनुसार परिशीलन किया जाये , तो यह सभी मान्यताएं इस भू - भाग के नामकरण पर सटीक बैठती है ।
स्वतंत्रता आंदोलन में इस जिले के निवासियों के विद्रोही तेवर के कारण इसे बागी बलिया के नाम से भी जाना जाता है।
1942 के आंदोलन में बलिया के निवासियों ने स्थानीय अंग्रेजी सरकार को उखाड फेंका था। चित्तू पांडेय (अंग्रेजी: Chittu Pandey),
जिन्हें बलिया का शेर भी कहा जाता है, के नेतृत्व में कुछ दिनों तक स्थानीय सरकार भी चली, लेकिन बाद में अंग्रेजों ने वापस अपनी सत्ता कायम कर ली।
इसी जिले के रामपुर दलनछपरा में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा0 राजेन्द्र प्रसाद की पत्नी राजवंशी देवी का जन्म हुआ था । यही इसी गांव मे इन दोनो का विवाह भी हुआ था ।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी का जन्म भी इसी इलाके के लाला के छपरा मे हुआ था । जिसे आज जयप्रकाश नगर के नाम से जाना जाता है ।

No comments:

Post a Comment