बलिया का नामकरण -
जिले के नाम की उत्पत्ति: - जिला, Ballia के नाम का मूल, लंबे विवाद का विषय रहा है. नाम की उत्पत्ति के बारे में एक और विश्वास है कि य
ह जगह के देश के रेतीले प्रकृति से प्राप्त किया गया है स्थानीय "ballua" (balu अर्थ रेत) के रूप में जाना जाता है ।
बलिया जिले के नामकरण के सन्दर्भ मे अनेक मान्यतायें है ।
बलिया जिले के नामकरण के सन्दर्भ मे अनेक मान्यतायें है ।
पहली मान्यता यह है कि वेदोदय काल में दैत्यराज हिरण्यकश्यप के प्रपौत्र , भक्तराज प्रह्लाद के पौत्र , राजा विरोचन के पुत्र दानवीर राजा बलि ने इन्द्र पद की प्राप्ति के लिए अपने कुलगुरु , महर्षि भृगु के पुत्र शुक्राचार्य के पौरहित्य मे इस भू - भाग पर यज्ञ कराया था । संस्कृत भाषा मे यज्ञ को याग कहा जाता है । इस कारण जहां बलि ने याग किया उस भू - भाग को बलियाग के नाम से जाने जाना लगा । कालान्तर मे बलियाग शब्द मे से ग अक्षर का लोप हो गया , और यह स्थान बलिया के नाम से जाना जाने लगा ।इस मान्यता को इस बात से भी बल मिलता है कि दैत्यगुरु शुक्राचार्य के पिता महर्षि भृगु को त्रिदेवों की परीक्षा मे लगा पाप भी इसी पवित्र भूमि पर धुला था । इस वनाच्छादित क्षेत्र को महर्षि भृगु ने ही आबाद भी किया था । यहां उस कालख्ण्ड मे रहने वाली असभ्य , अशिक्षित जातियों को सुसभ्य और शिक्षित भी महर्षि भृगु ने ही बनाया था ।
यहां की मूल निवासी जातियों को खेती करना भी उन्होने ही सिखाया । इतना ही नही तो इस क्षेत्र मे पानी की उपलब्धता बनी रहे , इसके लिए यहां के निवासियों को प्रोप्तसाहित करके सरयू की जलधारा को नहर कटवा कर यहां तक ले आकर गंगा नदी मे मिलवाया । जिस समय गंगा - सरयू की जलधारायें टकराने लगी तो उनसे दर्र - दर्र - घर्र - घर्र की ध्वनि निकलने लगी । तब महर्षि भृगु ने यहां पर सरयू नदी का नाम घार्घरा रख दिया , जो आज भी यहां इसी नाम से जानी जाती है । इसी प्रकार से उन्होने इस काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अपने शिष्य का नाम दर्दर रख दिया । जिनके सम्मान मे आज भी यहां दर्दरी का मेला लगता है ।
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