तू मखसूसियत से मजबूती का कदम तो उठा, मकबूलियत खुद-ब-खुद पूछेगी तेरा पता..। यह बानगी उस शख्स की है जिसने पद्मश्री अवार्ड हासिल कर जंग-ए-आजादी में स्वर्णिम इतिहास रचने वाली बागी धरती के दामन में बुधवार को एक और नगीना जड़ दिया। विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ.जगदीश शुक्ल को मिले इस सम्मान से आज हर भारतवासी फूले नहीं समा रहा है। उनके पैतृक गांव मिड्ढा में तो जश्न का माहौल है। इस सम्मान को हासिल करने के बाद तो डॉ.शुक्ल के पास भी अपने जज्बातों को बयां करने के लिए शब्द ही नहीं थे। अमेरिका से दूरभाष पर 'जागरण' से बातचीत के दौरान उनकी खुशी बस महसूस करने लायक थी। कहा कि अवार्ड तो सैकड़ों मिले लेकिन पद्मश्री पाकर लग रहा गोया पूरा जहां मिल गया। अपनी इस कामयाबी पर उन्होंने भारत के हर नागरिक का शुक्रिया अदा किया लेकिन इस दौरान उनकी जुबां पर बचपन की वे शरारतें आ ही गई।
मध्यमवर्गीय परिवार में पले-बढ़े इस शख्स ने कहा कि तब प्राथमिक विद्यालय नहीं था उनके गांव में। बरगद के पेड़ के नीचे ही स्कूल चलता था। पठन-पाठन का अपेक्षित माहौल यहां न होने पर उन्होंने तभी ठान लिया था कि कुछ करना है। मिडिल की पढ़ाई सुखपुरा में हुई। इसके बाद श्रीराम शरण इंटर कालेज शिवपुर से हाईस्कूल किया। सतीश चंद्र कालेज से इंटर करने के बाद उन्होंने बीएस-सी व एमएस-सी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से किया। इसी बीच पूना में साइंटिफिक अफसर की नौकरी मिल गई। कुछ दिनों बाद ही अमेरिका जाने का मौका मिला।
जार्ज मेशन यूनिवर्सिटी के प्रख्यात मौसम वैज्ञानिक डॉ.जगदीश शुक्ल कहते हैं कि उनकी टीम इन दिनों तेजी से बदल रही विश्व की जलवायु को लेकर खासा चिंतित है। उनका ध्यान पूर्वाचल समेत पूर्वी उत्तर प्रदेश की जलवायु पर भी है। मिढ्डा गांव के विलेज रिसोर्स सेंटर पर स्थापित विभिन्न संयंत्रों के जरिये महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में बराबर जानकारी ली जा रही है। श्री शुक्ल के अनुसार यहां लगे एयरोनेट के माध्यम से पूर्वी उत्तर प्रदेश ही नहीं अपितु पूरे भारतवर्ष में बढ़ते प्रदूषण और मौसम में एकाएक हो रहे परिवर्तन का अध्ययन नासा व विश्व के अनेक देशों के मौसम विज्ञानी कर रहे हैं। बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर भारत में सुपर कम्प्यूटर लाने के पीछे डॉ.शुक्ल की भी अहम भूमिका रही।
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