Sunday, August 19, 2012

बलिया जिला के वैज्ञानिक डा. जगदीश शुकुल के मिलल पद्मश्री


 तू मखसूसियत से मजबूती का कदम तो उठा, मकबूलियत खुद-ब-खुद पूछेगी तेरा पता..। यह बानगी उस शख्स की है जिसने पद्मश्री अवार्ड हासिल कर जंग-ए-आजादी में स्वर्णिम इतिहास रचने वाली बागी धरती के दामन में बुधवार को एक और नगीना जड़ दिया। विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ.जगदीश शुक्ल को मिले इस सम्मान से आज हर भारतवासी फूले नहीं समा रहा है। उनके पैतृक गांव मिड्ढा में तो जश्न का माहौल है। इस सम्मान को हासिल करने के बाद तो डॉ.शुक्ल के पास भी अपने जज्बातों को बयां करने के लिए शब्द ही नहीं थे। अमेरिका से दूरभाष पर 'जागरण' से बातचीत के दौरान उनकी खुशी बस महसूस करने लायक थी। कहा कि अवार्ड तो सैकड़ों मिले लेकिन पद्मश्री पाकर लग रहा गोया पूरा जहां मिल गया। अपनी इस कामयाबी पर उन्होंने भारत के हर नागरिक का शुक्रिया अदा किया लेकिन इस दौरान उनकी जुबां पर बचपन की वे शरारतें आ ही गई।

मध्यमवर्गीय परिवार में पले-बढ़े इस शख्स ने कहा कि तब प्राथमिक विद्यालय नहीं था उनके गांव में। बरगद के पेड़ के नीचे ही स्कूल चलता था। पठन-पाठन का अपेक्षित माहौल यहां न होने पर उन्होंने तभी ठान लिया था कि कुछ करना है। मिडिल की पढ़ाई सुखपुरा में हुई। इसके बाद श्रीराम शरण इंटर कालेज शिवपुर से हाईस्कूल किया। सतीश चंद्र कालेज से इंटर करने के बाद उन्होंने बीएस-सी व एमएस-सी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से किया। इसी बीच पूना में साइंटिफिक अफसर की नौकरी मिल गई। कुछ दिनों बाद ही अमेरिका जाने का मौका मिला।

जार्ज मेशन यूनिवर्सिटी के प्रख्यात मौसम वैज्ञानिक डॉ.जगदीश शुक्ल कहते हैं कि उनकी टीम इन दिनों तेजी से बदल रही विश्व की जलवायु को लेकर खासा चिंतित है। उनका ध्यान पूर्वाचल समेत पूर्वी उत्तर प्रदेश की जलवायु पर भी है। मिढ्डा गांव के विलेज रिसोर्स सेंटर पर स्थापित विभिन्न संयंत्रों के जरिये महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में बराबर जानकारी ली जा रही है। श्री शुक्ल के अनुसार यहां लगे एयरोनेट के माध्यम से पूर्वी उत्तर प्रदेश ही नहीं अपितु पूरे भारतवर्ष में बढ़ते प्रदूषण और मौसम में एकाएक हो रहे परिवर्तन का अध्ययन नासा व विश्व के अनेक देशों के मौसम विज्ञानी कर रहे हैं। बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर भारत में सुपर कम्प्यूटर लाने के पीछे डॉ.शुक्ल की भी अहम भूमिका रही।

बागी बलिया नाम क्यू पड़ा ?

भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में एक नगर पालिका परिषद के बोर्ड के साथ एक शहर है.शहर की पूर्वी सीमा गंगा और घाघरा के संगम में निहित है् , यह शहर गाजीपुर से 76 किलोमीटर और वाराणसी से 150 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व दिश में स्थित है.
बलिया का नामकरण -
जिले के नाम की उत्पत्ति: - जिला, Ballia के नाम का मूल, लंबे विवाद का विषय रहा है. नाम की उत्पत्ति के बारे में एक और विश्वास है कि य
ह जगह के देश के रेतीले प्रकृति से प्राप्त किया गया है स्थानीय "ballua" (balu अर्थ रेत) के रूप में जाना जाता है ।
बलिया जिले के नामकरण के सन्दर्भ मे अनेक मान्यतायें है ।



पहली मान्यता यह है कि वेदोदय काल में दैत्यराज हिरण्यकश्यप के प्रपौत्र , भक्तराज प्रह्लाद के पौत्र , राजा विरोचन के पुत्र दानवीर राजा बलि ने इन्द्र पद की प्राप्ति के लिए अपने कुलगुरु , महर्षि भृगु के पुत्र शुक्राचार्य के पौरहित्य मे इस भू - भाग पर यज्ञ कराया था । संस्कृत भाषा मे यज्ञ को याग कहा जाता है । इस कारण जहां बलि ने याग किया उस भू - भाग को बलियाग के नाम से जाने जाना लगा । कालान्तर मे बलियाग शब्द मे से ग अक्षर का लोप हो गया , और यह स्थान बलिया के नाम से जाना जाने लगा ।इस मान्यता को इस बात से भी बल मिलता है कि दैत्यगुरु शुक्राचार्य के पिता महर्षि भृगु को त्रिदेवों की परीक्षा मे लगा पाप भी इसी पवित्र भूमि पर धुला था । इस वनाच्छादित क्षेत्र को महर्षि भृगु ने ही आबाद भी किया था । यहां उस कालख्ण्ड मे रहने वाली असभ्य , अशिक्षित जातियों को सुसभ्य और शिक्षित भी महर्षि भृगु ने ही बनाया था ।





यहां की मूल निवासी जातियों को खेती करना भी उन्होने ही सिखाया । इतना ही नही तो इस क्षेत्र मे पानी की उपलब्धता बनी रहे , इसके लिए यहां के निवासियों को प्रोप्तसाहित करके सरयू की जलधारा को नहर कटवा कर यहां तक ले आकर गंगा नदी मे मिलवाया । जिस समय गंगा - सरयू की जलधारायें टकराने लगी तो उनसे दर्र - दर्र - घर्र - घर्र की ध्वनि निकलने लगी । तब महर्षि भृगु ने यहां पर सरयू नदी का नाम घार्घरा रख दिया , जो आज भी यहां इसी नाम से जानी जाती है । इसी प्रकार से उन्होने इस काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अपने शिष्य का नाम दर्दर रख दिया । जिनके सम्मान मे आज भी यहां दर्दरी का मेला लगता है ।

बागी बलिया

दूसरी मान्यता के अनुसार रामायण महाकाव्य के रचयिता महर्षि बाल्मीकी का यहां आश्रम होने के कारण इसका नाम बाल्मीकी आश्रम हुआ ।
जो बाद मे बलिया के नाम से जाना जाने लगा । महर्षि बाल्मीकी का आश्रम इसी भू - भाग पर था । अयोध्या के राजा श्री राम की पत्नी सीता ने इसी आश्रम मे अपने जुड़वा पुत्रों कुश - लव को जन्म दिया , इसी जंगल मे उनका लालन - पालन हुआ । इस बात के भी अनेक प्रमाण यहां मौजूद है । पहली बात महर्षि
 बाल्मीकी का आश्रम तमसा छोटी सरयू के तट पर था । थोड़ी ही दूरी पर गंगा नदी बहती थी , ऐसा उल्लेख उन्होने स्वयं अपने ग्रन्थ बाल्मीकीय रामायण मे किया है । इसके अतिरिक्त ब्रिटिश इतिहासकार मि0 नेविल ने 1905के बलिया गजेटियर में यहां बाल्मीकी आश्रम होने की बात लिखा है । एक स्थलीय साक्ष्य आज भी यहां मौजूद है ,बलिया नगर से पूरब बिगही - बहुआरा के पास पंचेव गांव मे एक छोटे से प्राचीन मन्दिर में काले पत्थर की सीता जी की प्रतिमा अपने दोनों पुत्रों कुश - लव के साथ स्थापित है । यहां पर सीता नवमी को एक छोटा ग्रामीण मेला आज भी लगता है ।
तीसरी मान्यता है कि इसका नामकरण आनव राजा बलि की राजधानी होने के कारण बलिया पड़ा । यह राजा बलि आनव राजा थे ।इनके कालखण्ड और दानवीर दैत्यराज राजा बलि के कालखण्ड मे हजारो वर्षो का अन्तर है । इस चन्द्रवंशी आनव राजा बलि के पांच पुत्र अंग , बंग आदि थे ।
एक मान्यता यह भी है कि बौद्धकाल मे यह भू-भाग बुलियों के अधिकार मे था इन बुलि राजाओ के नाम पर इसका नाम बलिया पड़ा ।
इन अनेक मान्यताओ की अगर कालखण्डों के अनुसार परिशीलन किया जाये , तो यह सभी मान्यताएं इस भू - भाग के नामकरण पर सटीक बैठती है ।
स्वतंत्रता आंदोलन में इस जिले के निवासियों के विद्रोही तेवर के कारण इसे बागी बलिया के नाम से भी जाना जाता है।
1942 के आंदोलन में बलिया के निवासियों ने स्थानीय अंग्रेजी सरकार को उखाड फेंका था। चित्तू पांडेय (अंग्रेजी: Chittu Pandey),
जिन्हें बलिया का शेर भी कहा जाता है, के नेतृत्व में कुछ दिनों तक स्थानीय सरकार भी चली, लेकिन बाद में अंग्रेजों ने वापस अपनी सत्ता कायम कर ली।
इसी जिले के रामपुर दलनछपरा में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा0 राजेन्द्र प्रसाद की पत्नी राजवंशी देवी का जन्म हुआ था । यही इसी गांव मे इन दोनो का विवाह भी हुआ था ।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी का जन्म भी इसी इलाके के लाला के छपरा मे हुआ था । जिसे आज जयप्रकाश नगर के नाम से जाना जाता है ।

राजीव दीक्षित जी : एक परिचय


जीवन परिचय

राजीव दीक्षित का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जनपद की अतरौली तहसील के नाह गाँव में राधेश्याम दीक्षित एवं मिथिलेश कुमारी के यहाँ हुआ। इण्टरमीडिएट तक की शिक्षाफिरोजाबाद से प्राप्त करने के उपरान्त उन्होंने इलाहाबाद से बी. टेक. तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर से एम. टेक. प्राप्त की। राजीव के माता-पिता उन्हें एकवैज्ञानिक बनाना चाहते थे। पिता की इच्छा को पूर्ण करने हेतु कुछ समय भारत के सीएसआईआर तथा फ्रांस के टेलीकम्यूनीकेशन सेण्टर में काम किया। तत्पश्चात् वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ० ए पी जे अब्दुल कलाम के साथ जुड़ गये जो उन्हें एक श्रेष्ठ वैग्यानिक के साँचे में ढालने ही वाले थे किन्तु राजीव भाई ने जब पं० राम प्रसाद 'बिस्मिल' की आत्मकथा का अध्ययन किया तो अपना पूरा जीवन ही राष्ट्र-सेवा में अर्पित कर दिया। उनका अधिकांश समय महाराष्ट्र के वर्धा जिले में प्रो० धर्मपाल के कार्य को आगे बढाने में व्यतीत हुआ। राजीव भाई के जीवन में सरलता और विनम्रता कूट-कूट कर भरी थी। वे संयमी, सदाचारी, ब्रह्मचारी तथा बलिदानी थे। उन्होंने निरन्तर साधना की जिन्दगी जी । सन् १९९९ में राजीव जी के स्वदेशी व्याख्यानों की कैसेटों ने समूचे देश में धूम मचा दी थी। पिछले कुछ महीनों से वे लगातार गाँव गाँव शहर शहर घूमकर भारत के उत्थान के लिए और देश विरोधी ताकतों और भ्रष्टाचारियों को पराजित करने के लिए जन जागृति पैदा कर रहे थे। राजीव भाई बिस्मिल की आत्मकथा से इतने अधिक प्रभावित थे कि उन्होंने बच्चन सिंह से आग्रह कर-करके फाँसी से पूर्व उपन्यास लिखवा ही लिया। लेखक ने यह उपन्यास राजीव भाई को ही समर्पित किया था। राजीव पिछले 20 वर्षों से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों व उपनिवेशवाद के खिलाफ तथा स्वदेशी की स्थापना के लिए संघर्ष कर रहे थे।

[संपादित करें]योगदान

पिछले 20 वर्षों में राजीव भाई ने भारतीय इतिहास से जो कुछ सीखा उसकी जानकारी आम जनता को दी| उदाहरणार्थ अँग्रेज़ भारत क्यों आए ?, उन्होंने हमें गुलाम क्यों बनाया ?, अँग्रेजों ने भारतीय संस्कृति, शिक्षा उद्योगों को क्यों नष्ट किया, और किस तरह नष्ट किया ? इस विषय पर विस्तार से सबको बताया ताकि हम पुनः गुलाम न बन सकें| इन बीस वर्षों में राजीव भाई ने लगभग १५००० से अधिक व्याख्यान दिये जिनमें से कुछ आज भी उपलब्ध हैं| आज भारत में ५००० से अधिक विदेशी कम्पनियाँ व्यापार करके हमें लूट रही हैं, उनके खिलाफ राजीव भाई ने स्वदेशी आन्दोलन की शुरुआत की| देश में सबसे पहली स्वदेशी-विदेशी की सूची तैयार करके स्वदेशी अपनाने का आग्रह प्रस्तुत किया| १९९१ में डंकल प्रस्ताव के खिलाफ घूम-घूम कर जन-जागृति की और रैलियाँ निकालीं| कोका कोला और पेप्सी जैसे प्राणघातक कोल्ड ड्रिंक्स के खिलाफ अभियान चलाया और कानूनी कार्यवाही की| १९९१-९२ में राजस्थान के अलवर जिले में केडिया कम्पनी के शराब-कारखानों को बन्द करवाने में अहम् भूमिका निभायी| १९९५-९६ में टिहरी बाँध के खिलाफ ऐतिहासिक मोर्चे में संघर्ष किया और पुलिस लाठी चार्ज में काफी चोटें खायीं| उसके बाद १९९७ में सेवाग्राम आश्रम, वर्धा में प्रख्यात्इतिहासकार प्रो० धर्मपाल के सानिध्य में अँग्रेजों के समय के ऐतिहासिक दस्तावेजों का अध्ययन करके समूचे देश को आन्दोलित करने का काम किया| पिछले १० वर्षों से स्वामी रामदेव के सम्पर्क में रहने के बाद ९ जनवरी २००९ को स्वामीजी के विशेष आग्रह पर भारत स्वाभिमान ट्रस्ट का पूर्ण उत्तरदायित्व अपने कन्धों पर सम्हाला। ३० नवम्बर २०१० को छत्तीसगढ़ के भिलाई शहर में हृदय गति अवरुद्ध हो जाने पर उनका देहांत हो गया।
भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत की सम्पूर्ण आजादी के आंदोलन में आहुति देने वाले भारत स्वाभिमान के राष्ट्रीय सचिव, स्वदेशी आंदोलन के प्रणेता, प्रखर राष्ट्रीय चितंक भाई राजीव दीक्षित जी के निधन के बाद समय मानो रुक सा गया। सम्पू्र्ण राष्ट्र में, विश्व के विभिन्न देशों में शोक की लहर दौड गई। परमात्मा के उस प्रतिभाशाली पुत्र को खोने के बाद मां ही नहीं भारत मां भी आँसू न रोक पाई होगी। लोग कहा करते है कि पूर्व सांसद स्व, प्रकाशवीर शास्त्री के बाद किसी व्यक्तित्व का वक्तव्य सुनकर समय ठहर जाता था तो उस व्यक्ति का नाम था “राजीव भाई”। “तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहे न रहे ।” उन्होंने अपने जीवन, जवानी व अपनी प्रतिभा को मातृभूमि की बलिवेदी पर आहूत कर दिया। महात्मा गांधी आश्रम वर्धा (महाराष्ट्र), इलाहाबाद, हरिद्वार आदि उनकी कर्मभूमि के मुख्य केन्द्र थे। यद्यपि उनका जन्म स्थान अलीगढ उत्तर प्रदेश हुआ। मां मिथलेश, पिता श्री राधेश्याम दीक्षित के दो पुत्र श्री राजीव एवं श्री प्रदीप जी तथा एक पुत्री बहन लता और उन सब में भी राजीव भाई सबसे बडे थे। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से B-Tech करते समय से ही आपके भीतर राष्ट्र के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना पैदा हुई। भारतीय सभ्यता, भारतीय संस्कृति पर मंडरा रहे खतरों को लेकर आक्रोश पैदा हुआ। मां भारती को मानसिक गुलामी, विदेशी भाषा-विदेशी षड्यन्त्रों के मकडजाल से मुक्त करवाने के लिए अपने “आजादी बचाओ आन्दोलन” को स्वर प्रदान किया। आपने राष्ट्र को आर्थिक महाशक्ति के रुप में खडा करने के लिए आजीवन ब्रह्मचारी रहने का निर्णय लिया और उसे जीवन पर्यन्त निभाया। खादी कपडों के संत अथवा स्वदेशी कपडों के किसी संत को, किसी दिव्यात्मा को महात्मा गांधी के बाद कभी याद किया जायेगा तो भाई राजीव जी का नाम सबसे ऊपर आयेगा। स्वदेशी का आग्रह सारी जिन्दगी उन्होंने नहीं छोडा। पं, रामप्रसाद बिस्मिल, चन्द्रशेखर आजाद की तरह स्वदेशी विचारधारा को उन्नत किया, उसे प्रसारित किया, उसे स्थापित करने के मार्ग में अपने जीवन की आहुति इस राष्ट्र-यज्ञ में सौंप दी। विदेशी कम्पनियों की लूट की बात हो या भारत का स्वर्णिम अतीत का गौरव जगाने की बात हो, भाई राजीव की वाणी ने भारत के युवाओं में देश-विदेशों के राष्ट्रभक्त भाई-बहनों में स्वाभिमान को जागृत किया। राजीव भाई अक्सर कहा करते थे कि हम विज्ञान में सबसे आगे, धन-सम्पदा में सबसे आगे थे। परन्तु हमने जीवन में चालाकी नही सीखी। इसी कारण अंग्रेजों के गुलाम बने रहे। घरेलू नुक्खों की बात हो या होम्योपैथी चिकित्सा की बात हो उनकी इस पर विशेष पकड थी। इसके माध्यम से उन्होंने हजारों लोगों का ईलाज किया। इस विषय पर उनका गहन अध्ययन, लेखन एवं अनुभव था। वे पाश्चात्य संस्कृति, पाश्चात्य भाषा के साथ-साथ पाश्चात्य चिकित्सा के भी घोर विरोधी थे। अन्त तक उन्होंने इस सिद्घान्तों का दृढता के साथ पालन किया। सिद्घान्तों का पालन करते हुए अनेकों बाध आयें, तूफान एवं झंझावत उठे जिन्होंने उनके जीवन को भी लीलने का प्रयास किया। परन्तु उन्होंने कभी समझौतावादी एवं पलायनवादी होना स्वीकार नही किया। सिद्घान्तों के प्रति दृढता सीखनी हो तो उनका जीवन हम सब के लिये आदर्श रहेगा। भारत मां के गौरव पुत्र, ओजस्वी वक्ता-जिनकी वाणी पर मां सरस्वती का वास था। जब वह बोलते थे तो घण्टों “मन्त्र-मुग्ध” होकर लोग उनको सुनते रहा करते थे। भारत के स्वर्णिम अतित का गुण-गान करते हुए अथवा विदेशियों के द्वारा की गई आर्थिक लूट के आँकडे गिनवाते हुए उनका दिमाग कम्प्यूटर से भी तेज चलता था। यदि उन्हें भारत का चलता-फिरता सुपर कम्प्यूटर कहा जाये तो अतिश्योक्ति नही होगी। विलक्षण प्रतिभा के धनी भाई राजीव जी की विनम्रता सबके ह्रदय को छू जाती थी। योगॠषि पूज्य स्वामी जी के सद्रशिष्य, अहंकारमुक्त, संस्कारयुक्त राजीव भाई एक सात्विक कार्यकर्त्ता थे। भारत को विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनाने को संकल्पित ‘भारत-स्वाभिमान’ के उद्देश्यों को प्रचारित-प्रसारित करते हुए आप छत्तीसगढ राज्य के दुर्ग जिला में प्रवास पर थे। आपने अपने कर्मक्षेत्र में प्राणों का उत्सर्ग कर भारत मां को आर्थिक गुलामी से मुक्त करवाने हेतु अपना बलिदान कर दिया। छत्तीसगढ से कार्यकर्त्ताओं ने उनकी सेवा में आदर्श पूर्ण कर्त्तव्य का निर्वाह किया। परन्तु अफसोस काल के क्रूर पंजो से हम उन्हें नहीं बचा पाये । उनके आकस्मिक निधन पर पतंजलि योग समिति, भारत स्वाभिमान, महिला पतंजलि योग समिति के सभी केन्द्रीय प्रभारी, प्रन्तीय प्रभारी, जिला प्रभारी, तहसील प्रभारी सभी शिक्षकों व कार्यकर्त्तों की ओर से भावपूर्ण श्रद्घाजंलि। हम सब कार्यकर्त्ता संकल्प लेते है कि हम स्वदेशी के प्रति 100 प्रतिशत आग्रह रखते हुए अहंकारमुक्त, विनम्र जीवन को अपनाकर भाई राजीव जी के सपनों को पूरा करने का प्रयास करेंगे। वो मरे नहीं आस्था चैनल एवं संस्कार चैनल के माध्यम से उनकी वाणी, उनका संदेश उनको सदैव अमर बनाये रखेगा। वे सदैव हमारे बीच रहेगें।
  • राजीव भाई जिनका निष्कलंक जीवन सादगी, स्वदेशी , पवित्रता, भक्ति, श्रद्घा, विश्वास से भरा हुआ था। चाहे लोगों ने उन्हें कितना भी कष्ट दिया हो उन्होंने उफ नहीं की।
  • पूज्य स्वामी रामदेव जी का राजीव भाई से पहला संवाद कनखल के आश्रम मे हुआ था।
  • राजीव भाई लगभग दो दशक से अपना संपूर्ण जीवन लोगों के लिये जी रहे थे।
  • राजीव भाई भगवान के भेजे हुए एक श्रेष्ठतम रचना थे, धरती पर एक ऐसी सौगात जिसे हम चाह कर भी पुन: निर्मित नहीं कर सकते।
  • राजीव भाई के ह्रदय में एक ऐसी आग थी, जिससे प्रतीत होता था कि वे अभी ही भ्रष्ट तंत्र को, भ्रष्टाचार को खत्म कर देंगे।
  • ‘भारत स्वाभिमान’ आंदोलन के साथ आज पूरा देश उनके साथ खडा हुआ है।
  • हम सबको मिल करके भारत स्वाभिमान का जो संकल्प राजीव भाई ने लिया था, उसे पूरा करना है और अब वो साकार रुप ले चुका है।
  • जब भारत स्वाभिमान का आंदोलन बहुत बडे चरण पर है तो एक बहुत बडी क्षति हुई है जिसे शब्दों में बयान नही किया जा सकता। ये ह्रदय की नहीं बल्कि समस्त राष्ट्र की पीडा है।
  • व्यक्ति जब समिष्ट के संकल्प के साथ जीने लगता है तो वो सबका प्रिय हो जाता है। वे अपने माता-पिता के लाल नही थे, बल्कि करोडों-करोडों लोगों के दुलारे और प्यारे थे। वे भारत माता के लाल थे।
  • एक मां की कोख धन्य होती है जब ऐसे लाल पैदा होते है।
  • राजीव भाई हमारे भाई ही नहीं बल्कि देश के करोडों-करोडों लोगों के भाई थे।
  • प्रतिभावान, विनम्र, निष्कलंक जीवन था राजीव भाई का।
  • राजीव भाई की याद में देश की जनता स्वदेशी अपनाने का संकल्प ले।
  • ‘भारत स्वाभिमान’ के मुख्यालय का नाम ‘राजीव भवन’ होगा।
  • पतंजलि योगपीठ और भारत स्वाभिमान के लिये समर्पित थे राजीव भाई।
  • एक वाणी जो भ्रष्ट व्यवस्थाओं के खिलाफ ‘आग उगलती वह आज मौन हो गयी।’
  • राजीव भाई को इन्साइक्लोपीडिया कहा जाता था। वे चलते-फिरते अथाह ज्ञान के सागर थे।– डाँक्टर प्रणव पंड्या जी
5000 वर्षों का ज्ञान, असीम स्मृति वाले, अपरिमित क्षमता वाले थे राजीव भाई।–डा0 पंड्या एक महान आत्मा आज अपना प्रकाश फैलाकर अपना शरीर को अग्नि में विलीन कर गया है वो पुन: जन्म लेकर अपने कार्य को पूरा करेगा।– आचार्य अरुण जोशी जी

[संपादित करें]राजीव दीक्षित के विचार

  • राजीव भाई का मानना था कि उदारीकरण, निजीकरण, तथा वैश्वीकरण, ये तीन ऐसी बुराइयां है, जो हमारे समाज को तथा देश की संस्कृति व विरासत को तोड़ रही है |
  • भारतीय न्यायपालिका तथा क़ानून व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि भारत अभी भी उन कानूनों तथा अधिनियमों में जकड़ा हुआ है जिनका निर्माण ब्रिटिशराज में किया गया था , और इससे देश लगातार गर्त में जाता जा रहा है |
  • राजीव दीक्षित जी स्वदेशी जनरल स्टोर्स कि एक श्रृंखला बनाने का समर्थन करते थे, जहाँ पर सिर्फ भारत में बने उत्पाद ही बेंचे जाते हैं | इसके पीछे के अवधारणा यह थी, कि उपभोक्ता सस्ते दामों पर उत्पाद तथा सेवाएं ले सकता है और इससे निर्माता से लेकर उपभोक्ता, सभी को सामान फायदा मिलता है, अन्यथा ज्यादातर धन निर्माता व आपूर्तिकर्ता कि झोली में चला जाता है |
  • राजीव भाई ने टैक्स व्यवस्था के विकेन्द्रीकरण की मांग की, और कहा कि वर्तमान व्यवस्था दफ्तरशाही में भ्रष्टाचार का मूल कारण है | उनका दावा था कि कि टैक्स का 80 प्रतिशत भाग राजनेताओं व अधिकारी वर्ग को भुगतान करने में ही चला जाता है, और सिर्फ 20 प्रतिशत विकास कार्यों में लगता है |
  • उन्होंने वर्तमान बजट व्यवस्था की पहले कि ब्रिटिश बजट व्यवस्था से तुलना की, और इन दोनों व्यवस्थाओं को सामान बताते हुए आंकड़े पेश किये |
  • राजीव भाई का स्पष्ठ मत था कि आधुनिक विचारकों ने कृषि क्षेत्र को उपेक्षित कर दिया है | किसान का अत्यधिक शोषण हो रहा है तथा वे आत्महत्या की कगार पर पहुँच चुके हैं |

[संपादित करें]शुरू किये गए आंदोलन एवं कार्य

  • राजीव भाई ने स्वदेशी आंदोलन तथा आजादी बचाओ आंदोलन कि शुरुआत कि तथा इनके प्रवक्ता बने |
  • राजीव भाई ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की 150वीं जयंती की शाम को कोलकाता में आयोजित किये गए कार्यक्रम का नेतृत्व किया, जो कि विभिन्न संगठनों व प्रख्यात व्यक्तियों द्वारा प्रोत्साहित व प्रचारित किया गया था, और पूरे देश में मनाया गया था |
  • उन्होंने नयी दिल्ली में स्वदेशी जागरण मंच के नेतृत्व में 50,000 लोगों को संबोधित किया |
  • उन्होंने जनवरी 2009 में "भारत स्वाभिमान न्यास" कि स्थापना कि तथा इसके राष्ट्रीय प्रवक्ता तथा राष्ठ्रीय सचिव बने | स्वाभिमान ट्रस्ट विश्वविख्यात योग गुरू बाबा रामदेव की योग क्रांति को देश के सभी 638365 गांवों तक पहुंचाने तथा स्वस्थ, समर्थ एवं संस्कारवान भारत के निर्माण के लक्ष्यों को लेकर स्तापित एक ट्रस्ट है। इसका उद्देश्य भ्रष्टाचार, गरीबी, भूख, अपराध, शोषण मुक्त भारत का निर्माण कराना है | ट्रस्ट गैर राजनीतिक होगा और राष्ट्रीय आन्दोलन चलायेगा जिसका यह प्रयास होगा कि भ्रष्ट, बेईमान और अपराधी किस्म के लोग सत्ता के सिंहासन पर नही बैठ सकें.

[संपादित करें]राजीव भाई के नाम ‘राजीव भवन’

वे सच्चे अर्थों में स्वदेशी रंग से सराबोर थे। उन्होंने मरते दम तक बिना अहंकार, निस्वार्थ भाव से देश और देशवासियों की सेवा करते हुए अपना जीवन अर्पण कर दिया। उनके अन्तिम संस्कार के समय स्वामी रामदेव ने घोषणा की कि उनके जन्म/बलिदान दिवस ३० नवम्बर को स्वदेशी दिवस के रूप में मनाया जायेगा। साथ ही यह भी आश्वासन दिया कि पतंजलि योगपीठ हरिद्वार में बन रहे भारत स्वाभिमान भवन का नाम राजीव भवन ही होगा क्योंकि इससे बेहतर और कोई श्रद्धांजलि दी ही नहीं जा सकती।

[संपादित करें]देहान्त का दुखद समाचार

३० नवम्बर, २०१० मंगलवार सायं राजीव भाई को अचानक दिल का दौरा पड़ने के बाद पहले भिलाई के सरकारी अस्पताल में और फिर अपोलो बीएसआर अस्पताल में दाखिल कराया गया था। उन्हें दिल्ली ले जाने की तैयारी की जा रही थी लेकिन इसी दौरान स्थानीय डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
डाक्टरों का कहना था कि उन्होंने एलोपैथिक इलाज से लगातार परहेज किया। सोमवार को बेमेतरा प्रवास के सिलसिले में वे भिलाई में रुके थे वहाँ मंगलवार देर सायं उन्होंनेसीने में दर्द की शिकायत की तो भिलाई में उनको भिलाई स्टील प्लान्ट के सरकारी अस्पताल में दाखिल कराया गया मगर वहाँ के डाक्टरों ने मरीज की हालत देखते हुए हाथ खड़े कर दिए। उनको अपोलो बीएसआर में भर्ती किया गया जहाँ डाक्टरों ने अपने स्तर पर कोशिश की मगर उनको बचाया नहीं जा सका।
डाक्टरों का यह भी कहना था कि राजीव भाई होम्योपैथिक दवाओं के लिए अड़े हुए थे और इलाज के लिए तब माने जब बाबा रामदेव ने फोन पर उनको समझाया। अस्पताल में कुछ दवाएँ और इलाज से वे कुछ समय के लिए बेहतर हो गए,मगर रात में एक बार फिर उनको गम्भीर दौरा पड़ा जो उनके लिये घातक सिद्ध हुआ।
राजीव भाई का पार्थिव शरीर बुधवार सुबह रायपुर स्थित डॉ० अम्बेडकर हॉस्पिटल लाया गया। वहाँ शव पर रासायनिक लेपन की प्रक्रिया पूरी की गयी और दोपहर उनका शव विशेष विमान से हरिद्वार ले जाया गया।
स्वर्गीय दीक्षित के निधन की खबर से उनके समर्थकों को गहरा झटका लगा। लोगों ने रायपुर अस्पताल में उनके शव पर श्रद्धा सुमन अर्पित किये। वे इन दिनों बाबा रामदेव के साथ पतंजलि योगपीठ से जुड़ गये थे और स्वदेशी के साथ योग का भी प्रचार कर रहे थे। राजीव भाई का शव परीक्षण नहीं किया गया, और इससे उनकी मौत पर कईं सवाल उठ जाते हैं| जाहिर है कि इसे प्राकृतिक मौत नहीं कहा जा सकता | जब उन्हे लाया गया तो उनका शरीर काला पड गया था | शरीर काला सिर्फ दो अवस्था मे पड्ता है, या तो जोर से करन्ट का झटका लगा हो या फिर ज़हर दिया गया हो |
इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह थी, कि देश के किसी भी मीडिया चैनल पर राजीव दीक्षित के निधन की खबर को नहीं दिखाया गया | वे पिछले 20 वर्षों से हज़ारों बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विरुद्ध एक भीषण जंग लड़ रहे थे | वे साफ़ तौर पर नाम लेकर कंपनियों के षड्यंत्रों का पर्दाफाश करते थे, और पेप्सी-कोक जैसी कंपनियों के लिए वे सबसे बड़े शत्रु थे | शायद यही कारण था, कि मीडिया उनकी मौत पर चुप बैठी रही |

[संपादित करें]राजीव दीक्षित के लेख व पुस्तकें

राजीव दीक्षित ने विभिन्न विषयों पर अनेकों लेख व पुस्तकें लिखी हैं । उनके द्वारा लिखित व् सम्पादित कुछ पुस्तकों/आलेखों की सूची यहाँ दी जा रही है-
  • बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का मकड़जाल
  • अष्टांग ह्रदयम् (स्वदेशी चिकित्सा)
  • हिस्ट्री ऑफ द एमेन्सिस
  • भारत और यूरोपीय संस्कृति
  • स्वदेशी : एक नया दर्शन
  • हिन्दुस्तान लिवर के कारनामे

[संपादित करें]श्रद्धांजलियाँ

  1. "राजीव भाई भगवान के भेजे हुए एक श्रेष्ठतम रचना थे,धरती पर एक ऐसी सौगात जिसे हम चाह कर भी पुन: निर्मित नहीं कर सकते। भारत स्वाभिमान का संगठन उन्होंने ही खड़ा किया था। हम सबको मिलकर उनका संकल्प पूरा करना है।स्वर्गीय भाई श्री राजीव जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते है l जो मैने कभी नहीं सोचा था और कभी सपने मे भी नहीं देखा था वह मुझे आज आप के सामने वह कहना पड़ रहा है। कि जो दो हाथ मेरे लाखो करोड़ो हाथ के बराबर थे वह हाथ आज की रात मेरा साथ छोड गये। भाई श्री राजीव जी जो एक एक पल देश के लिये जिते थे जिनके तन मे, मन मे, हृदय मे, प्राण मे देश प्रेम ईतना प्रखर था की अपना पुरा बचपन, अपनी पुरी जवानी, अपना पुरा जीवन राष्ट्र के लिये अर्पित कर दिया था।
दो दशक से जो देश भर मे घुम घुम कर के लोगो के भीतर स्वाभिमान जगा रहे थे, पहले आजादी बचाओ आन्दोलन के नाम से उन्होने एक आन्दोलन शुरु किया था। और बिगत लगभग दस बर्षो से हृदय से आत्मा से मेरे साथ जुडे और वर्तमान मे भारत स्वाभिमान के राष्ट्रिय प्रवक्ता एवं सचिव का दायित्व देख रहे थे।
भारत स्वाभिमान के इस यात्रा के दौरान भिलाई में देश के इस भलाई के इस काम मे देश मे, जो चारो और रोग, भय, भूख, भ्रम, भ्रान्ति, भ्रष्टाचार की लूट और भ्रष्ट सत्ता और व्यवस्था से जिनका जीवन हमेशा उद्वेलित वह आन्दोलित रहता था। जैसे एक सैनिक रण भूमि में युद्ध करता हुआ अपने प्राणों की आहुति दे देता है, अपना बलिदान वह शाहादत दे देता है ऐसे ही भाई श्री राजीव जी इस राष्ट्र निर्माण के, इस चरित्र निर्माण के इस अभियान में, इस युद्ध क्षेत्र में, इस कर्म क्षेत्र में कार्य करते हुए अपने हृदय में भारत के स्वर्णीम अतीत को संजोये हुए और वर्तमान की पीडाओं के कारण पीडित हो कर के एक भारत के स्वर्णीम अतीत का सपना अपने हृदय मे संजोकर के हर पल जीते थे। जो मै नही कहना चाहता था आज मुझे वह कहना पड़ रहा है। उन्होने अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान अपनी आहुति देकर के हमसे सदा सदा के लिए विदा हो गये। हम अपने श्रद्धात्मिक हृदय से माँ भारती के इस लाल को जो भाई श्री राजीव जी, जो ज्ञान के यथार्थ भंडार थे उनके भीतर असीम अनन्त प्रतिभाए थी बहुत विराट उनका व्यक्तित्व था l उनको हम पतंजलि योगपीठ परिवार कि ओर से, भारत स्वाभिमान के इस अभियान की ओर से और करोड़ो करोड़ो देशभक्तों की ओर से हम श्रद्धांजलि अर्पित करते है। और जो स्वर्णिम अतीत का सपना उनहोंने अपने हृदय मे संजोया था हम सव मिलकर उस सपने को जल्द ही साकार करें l"-- स्वामी रामदेव
  1. राजीव भाई के जीवन में सरलता व नम्रता थी। शब्दों से सीख लेना तो सरल है परन्तु शब्दों को जीना बड़ा ही मुश्किल है।[-- आचार्य बालकृष्ण

दक्षिण में सर कर के नहो सोना चाहिए क्यू ?

दोस्तो भारत मे बहुत बड़े बड़े ऋषि हुये ! चरक ऋषि ,पतंजलि ऋषि ,शुशुद ऋषि ऐसे एक ऋषि हुए है 3000 साल पहले बाग्वट ऋषि ! उन्होने 135 साल के जीवन मे एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था अष्टांग हरद्यम उसमे उन्होने ने मानव शरीर के लिए सैंकड़ों सूत्र लिखे 
थे उनमे से एक सूत्र के बारे मे आप नीचे पढे !

बाग्वट जी एक जगह लिख रहे है ! कि जब भी आप आराम करे मतलब सुबह या शाम या रात को सोये तो हमेशा दिशाओ का ध्यान रख कर सोये !अब यहाँ पे वास्तु घुस गया वास्तुशास्त्र ! वास्तु भी विज्ञान ही है ! तो वो कहते की इसका जरूर ध्यान रखे !

क्या ध्यान रखे ???? तो वो कहते है हमेशा आराम करते समय सोते समय आपका सिर सूर्य की दिशा मे रहे ! सूर्य की दिशा मतलब पूर्व और पैर हमेशा पश्चिम की तरफ रहे !और वो कहते कोई मजबूरी आ जाए कोई भी मजबूरी के कारण आप सिर पूर्व की और नहीं कर सकते तो दक्षिण (south)मे जरूर कर ले ! तो या तो east या south ! जब भी आराम करे तो सिर हमेशा पूर्व मे ही रहे !पैर हमेशा पश्चिम मे रहे !और कोई मजबूरी हो तो दूसरी दिशा है दक्षिण ! दक्षिण मे सिर रखे उत्तर दिशा मे पैर !

आगे के सूत्र मे बागवट जी कहते है उत्तर मे सिर करके कभी न सोये !फिर आगे के सूत्र मे लिखते है उत्तर की दिशा म्रत्यु की दिशा है सोने के लिए ! उत्तर की दिशा दूसरे और कामो के लिए बहुत अच्छी है पढ़ना है लिखना है अभ्यास करना है ! उत्तर दिशा मे करे ! लेकिन सोने के लिए उत्तर दिशा बिलकुल निशिद है !

अब बागवट जी ने तो लिख दिया ! पर राजीव भाई इस पर कुछ रिसर्च किया ! तो राजीव भाई लिखते हैं कि गाव गाव जब मैं घूमता था तो किसी कि मृतुय हो जाती तो मुझे अगर किसी के संस्कार पर जाना पड़ता !तो वहाँ मैं देखता कि पंडित जी खड़े हो गए संस्कार के लिए !और संस्कार के सूत्र बोलना वो शुरू करते हैं !

तो पहला ही सूत्र वो बोलते हैं ! मृत का शरीर उत्तर मे करो मतलब सिर उत्तर मे करो !पहला ही मंत्र बोलेंगे मृत व्यक्ति का सिर उत्तर मे करो !और हमारे देश मे आर्य समाज के संस्थापक रहे दयानंद सरस्वती जी ! भारत मे जो संस्कार होते है ! जनम का संस्कार है गर्भधारण का एक संस्कार है ऐसे ही मृतुय भी एक संस्कार है !तो उन्होने एक पुस्तक लिखी है (संस्कार विधि) ! तो उसमे मृत संस्कार की विधि मे पहला ही सूत्र है ! मृत का शरीर उत्तर मे करो फिर विधि शुरू करो !
अब ये तो हुआ बागवट जी दयानंद जी आदि लोगो का !!

अब इसमे विज्ञान क्या है वो समझे !!
ये राजीव भाई का अपना explaination है !!

क्यूँ ????

आज का जो हमारा दिमाग है न वो क्यूँ ? के बिना मानता ही नहीं !
क्यूँ क्यूँ ऐसा करे ???
कारण उसका बिलकुल सपष्ट है ! आधुनिक विज्ञान ये कहता है आपका जो शरीर है !और आपकी पृथ्वी है इन दोनों के बीच एक बल काम करता है इसको हम कहते हैं गुरुत्वाकर्षण बल (GRAVITATION force )!

इसको आप ऐसे समझे जैसे आपने कभी दो चुंबक अपने हाथ मे लिए होंगे और आपने देखा होगा कि वो हमेशा एक तरफ से तो चिपक जाते हैं पर दूसरी तरफ से नहीं चिपकते ! दूसरे तरफ से वे एक दूसरे को धक्का मारते है ! तो ये इस लिए होता है चुंबक कि दो side होती है एक south एक north ! जब भी आप south और south को या north और north को जोड़ोगे तो वो एक दूसरे को धक्का मारेंगे चिपकेगे नहीं ! लेकिन चुंबक के south और north एक दूसरे से चिपक जाते है !!

अब इस बात को दिमाग मे रख कर आगे पड़े !

अब ये शरीर पर कैसे काम करता है !तो आप जानते है कि पृथ्वी का उत्तर और पृथ्वी का दक्षिण ये सबसे ज्यादा तीव्र है गुरुत्वाकर्षण के लिए ! पृथ्वी का उत्तर पृथ्वी का दक्षिण एक चुंबक कि तरह काम करता गुरुत्वाकर्षण के लिए ! अब ध्यान से पढ़े !आपका जो शरीर है उसका जो सिर वाला भाग है वो है उत्तर ! और पैर वो है दक्षिण !! अब मान लो आप उत्तर कि तरफ सिर करके सो गए ! अब पृथ्वी का उत्तर और सिर का उत्तर दोनों साथ मे आयें तो force of repulsion काम करता है ये विज्ञान ये कहता है !

force of repulsion मतलब प्रतिकर्षण बल लगेगा ! तो आप समझो उत्तर मे जैसे ही आप सिर रखोगे प्रतिकर्षण बल काम करेगा धक्का देने वाला बल !तो आपके शरीर मे स्कूचन आएगा contraction ! शरीर मे अगर सकुचन आया तो रक्त का प्रवाह blood pressure पूरी तरह से control के बाहर जाएगा !क्यूँ की शरीर को pressure आया तो blood को भी pressure आएगा ! तो अगर खून को pressure है तो नींद आए गई ही नहीं ! मन मे हमेशा धरपर धरपर चलती रहेगी !दिल की गति हमेशा तेज रहेगी !तो उत्तर की दिशा पृथ्वी की है जो north poll कहलाती है ! और हमारे शरीर का उत्तर ये है सिर ! अगर दोनों एक तरफ है तो force of repulsion (प्रतिकर्षण बल ) काम करेगा नींद आएगी ही नहीं !

अब इसका उल्टा कर दो आपका सिर दक्षिण मे कर दो ! तो आपका सिर north है उत्तर है ! और पृथ्वी की दक्षिण दिशा मे रखा हुआ है ! तो force of attraction काम करेगा ! एक बल आपको खींचेगा !और आपके शरीर मे अगर खीचाव पड़ेगा मान ली जिये अगर आप लेटे हैं !और ये पृथ्वी का दक्षिण है और इधर आपका सिर है !तो आपको खेचेगा और शरीर थोड़ा सा बड़ा होगा ! जैसे रबड़ खीचती है न ? elasticity ! थोड़ा सा बढ़ाव आएगा ! जैसे ही शरीर थोड़ा सा बड़ा तो boby मे relaxation आ गया !

उदारण के लिए जैसे आप अंगड़ाई लेते हैं न एक दम !शरीर को तान देते है फिर आपको क्या लगता है ??? बहुत अच्छा लगता है !क्यूँ की शरीर को ताना शरीर मे थोड़ा बढ़ाव आया और आप बहुत relax feel करते हैं !

इसलिए बागव्ट जी ने कहा की दक्षिण मे सिर करेगे तो force of attraction है ! उत्तर मे सिर करेगे तो force of repulsion है ! force of repulsion से शरीर पर दबाव पड़ता है ! force of attraction से शरीर पर खीचाव पड़ता है ! खीचाव और दबाव एक दूसरे के विपरीत है ! दबाव से शरीर मे सकुचन आएगा दबाव से शरीर मे थोड़ा सा फैलाव आएगा ! फैलाव है तो आप सुखी नींद लेंगे !और अगर दबाव है तो नींद नही आएगी है !

इस लिए बाग्वट जी ने सबसे बढ़िया विश्लेषण दिया है ! ये विश्लेषण जिंदगी मे सारे मानसिक रोगो को खत्म करने का उतम उपाय है ! नींद अच्छी ले रहे है तो सबसे ज्यादा शांति है ! इस लिए नींद आप अच्छी ले ! दक्षिण मे सिर करके सोये नहीं तो पूर्व मे !!

अब पूर्व क्या है ?????
पूर्व के बारे मे पृथ्वी पर रिसर्च करने वाले सब वैज्ञानिको का कहना है ! की पूर्व नूट्रल है ! मतलब न तो वहाँ force of attraction है ज्यादा न force of repulsion ! और अगर है भी तो दोनों एक दूसरे को balance किए हुए हैं !इस लिए पूर्व मे सिर करके सोयेगे तो आप भी नूट्रल रहेंगे आसानी से नींद आएगी !

पश्चिम का पुछेगे जी !??
तो पश्चिम पर रिसर्च होना अभी बाकी है !
बाग्वट जी मौन है उस पर कोई explanation देकर नहीं गए हैं !
और आज का विज्ञान भी लगा हुआ है इसके बारे भी तक कुछ पता नहीं चल पाया है !

तो इन तीन दिशाओ का ध्यान रखे !
उत्तर मे कभी सिर मत करे !
पूर्व या दक्षिण मे करे !

बस एक अंतिम बात का ध्यान रखे !
को साधू संत है या सन्यासी है ! जिहोने विवाह आदि नहीं किया ! वो हमेशा पूर्व मे सिर करके सोये ! और जो ग्रस्त आशरम मे जी रहे है ! विवाह के बंधन मे बंधे है परिवार चला रहे है ! वो हमेशा दक्षिण मे सिर करके सोये !