मै अपने गाँव लौटूंगा
झरवेरियों और बंसवारियों में उलझे
पंखो को बटोरते ,
वंही कंही छूट गया बचपन समेट लूँगा ,पहन लूँगा मोर पंख //
कोरी आँखों के सपने बिखरे होंगे ,
वंही कंही छूट गया बचपन समेट लूँगा ,पहन लूँगा मोर पंख //
कोरी आँखों के सपने बिखरे होंगे ,
वहीँ
... उड़ रही होंगी तितलियाँ
चुन लूँगा, बटोर लूँगा बीर बहूटियाँ/
मेरे चले आने के बाद खलिहान में पुआलों की खरही के नीचे छिपा कर रखे मेरे कंचे सुबक रहे होंगे/
भर लूँगा अपनी फटी जेबों में /
बांसों के झुरमुट में फंसी ,कहीं पड़ी होगी मेरी कपडे की गेंद ,
मेरे लौटने की प्रतीक्षा में आँखे बिछाए बाट विसूरते ,तर तर हो रही होगी /
मेरी सिंकियाई धमनियां वहीं कहीं गहूं के गांजों के बीच ,
फिर से पा लेंगी अपने लहू का आवेग /
मंदिर के बावली के किनारे सिमटते चरागाह से सटी अमराई में आकाश से उतर करसपनो जैसे सुग्गे मुझे खोज रहे होंगे ,
मेरे चले आने के बाद खलिहान में पुआलों की खरही के नीचे छिपा कर रखे मेरे कंचे सुबक रहे होंगे/
भर लूँगा अपनी फटी जेबों में /
बांसों के झुरमुट में फंसी ,कहीं पड़ी होगी मेरी कपडे की गेंद ,
मेरे लौटने की प्रतीक्षा में आँखे बिछाए बाट विसूरते ,तर तर हो रही होगी /
मेरी सिंकियाई धमनियां वहीं कहीं गहूं के गांजों के बीच ,
फिर से पा लेंगी अपने लहू का आवेग /
मंदिर के बावली के किनारे सिमटते चरागाह से सटी अमराई में आकाश से उतर करसपनो जैसे सुग्गे मुझे खोज रहे होंगे ,
धुंध से घिरे गन्ना और मकई के
लहलहाते खेतों के टेढ़े मेढ़े मेड़ों के मुजौटों के बीच
सावन की तेज बंवछारों में गदराये सांवाँ के बन्दर पुच्छी
बालों से झरते ,
अक्षरों को समेट कर अपने भीतर का स्वर मै पा लूँगा मै अपने गाँव लौटूंगा
अक्षरों को समेट कर अपने भीतर का स्वर मै पा लूँगा मै अपने गाँव लौटूंगा
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