Tuesday, November 27, 2012

मै अपने गाँव लौटूंगा

मै अपने गाँव लौटूंगा झरवेरियों और बंसवारियों में उलझे पंखो को बटोरते ,
वंही कंही छूट गया बचपन समेट लूँगा ,पहन लूँगा मोर पंख // 
कोरी आँखों के सपने बिखरे होंगे ,
वहीँ ... उड़ रही होंगी तितलियाँ चुन लूँगा, बटोर लूँगा बीर बहूटियाँ/
 मेरे चले आने के बाद खलिहान में पुआलों की खरही के नीचे छिपा कर रखे मेरे कंचे सुबक रहे होंगे/
भर लूँगा अपनी फटी जेबों में /
 बांसों के झुरमुट में फंसी ,कहीं पड़ी होगी मेरी कपडे की गेंद ,
मेरे लौटने की प्रतीक्षा में आँखे बिछाए बाट विसूरते ,तर तर हो रही होगी / 
 मेरी सिंकियाई धमनियां वहीं कहीं गहूं के गांजों के बीच ,
फिर से पा लेंगी अपने लहू का आवेग / 
 मंदिर के बावली के किनारे सिमटते चरागाह से सटी अमराई में आकाश से उतर करसपनो जैसे सुग्गे मुझे खोज रहे होंगे ,
धुंध से घिरे गन्ना और मकई के लहलहाते खेतों के टेढ़े मेढ़े मेड़ों के मुजौटों के बीच सावन की तेज बंवछारों में गदराये सांवाँ के बन्दर पुच्छी बालों से झरते ,
अक्षरों को समेट कर अपने भीतर का स्वर मै पा लूँगा मै अपने गाँव लौटूंगा

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