...पापा मुझे छोड़ने स्टेशन आया न करो ,
..आँसू छिपाते हो फेर कर नज़रे,
..इतना फीका मुस्कुराया न करो ..पापा मुझे छोड़ने आया न करो
... हिदायत से घर भर की लाइट्स बुझाते ,
... सोच कर भी न कितने सामान खरीदते ,
...गाड़ी का माइलेज चेक करते रहते ,
...मेरे हाथ में ए टी एम थमाया न करो ... पापा मुझे छोड़ने स्टेशन आया न करो ।
...पानी की बॉटल रखी या नही,
...टिकट कही भूली तो नही ,
...पर्स में खुले पैसे रखे या नही
..इतना नम प्यार जताया न करो ....पापा मुझे छोड़ने आया न करो ।
सीट के नीचे बैग जमाते ,
ध्यान रखना अकेली जा रही,
साथ की किसी महिला को बताते,
पल पल इतनी चिंता जताया न करो ...पापा मुझे छोड़ने आया न करो ।
पहुँचते ही कर देना फोन ,
अब कब होगा आना फिर तुम्हारा ,
रग रग कर देते हो तन्हा ,
उदासी से सर पर हाथ फिराया न करो ..आप स्टेशन आया न करो ।
मैं खामोश रीती हो जाती ,
जी भर ऐसे गले लगाया न करो ,
दूर तक देखती रह जाती हूँ बिखर कर,
ग़मगीन खड़े यू हाथ हिलाया न करो ,.. .....आप स्टेशन आया न करो ।
चप्पा चप्पा कर देते हो वीरान ,
रुन्धा गला बातो में छिपाया न करो,
मेरा आगा पीछा सोच सोच ,
अपना कलेजा दुखाया न करो,...... मुझे छोड़ने स्टेशन आया न करो ।
फ़ोन पे बात न सूझती आपको,
लो अपनी माँ से बात करो ,
बाद में पूछते उनसे ब्यौरा सारा ,
हमारे नाम पाई पाई के कागज़ बनवाया न करो.... आप स्टेशन आया न करो ।
Friday, June 3, 2016
Saturday, May 28, 2016
पहले कुछ भी ऐब नहीं था भारत बेचने वालों में?
satire
पहले कुछ भी ऐब नहीं था भारत बेचने वालों में
भारत तो बर्बाद हुआ है बस पिछले दो सालों में
पहले कुछ भी ऐब नहीं था भारत बेचने वालों में
भारत तो बर्बाद हुआ है बस पिछले दो सालों में
अब तो गंगा में भी देखो गंदे नाले बहते हैं
पहले बस अमृत बहता था सारे गंदे नालों में
पहले मुल्क की सारी दौलत सब लोगों में बंटती थी
बस अब की सरकार ने उसको बंद किया है तालों में
अब तो बस हैवान हैं सारे इन्सां जैसी शक्लों में
पहले बस भगवान् थे सारे इंसानों की खालों में
कितनी गन्दी बात है देखो कितनी उलटी दुनिया है
अब सत्ता का केंद्र नहीं है चोरों के रखवालों में
पहले की सारी खेती से केवल सोना उगता था
हीरों के टुकड़े मिलते थे चावल में और दालों में
Ajay Pandey Ji (Saaheb)
पहले बस अमृत बहता था सारे गंदे नालों में
पहले मुल्क की सारी दौलत सब लोगों में बंटती थी
बस अब की सरकार ने उसको बंद किया है तालों में
अब तो बस हैवान हैं सारे इन्सां जैसी शक्लों में
पहले बस भगवान् थे सारे इंसानों की खालों में
कितनी गन्दी बात है देखो कितनी उलटी दुनिया है
अब सत्ता का केंद्र नहीं है चोरों के रखवालों में
पहले की सारी खेती से केवल सोना उगता था
हीरों के टुकड़े मिलते थे चावल में और दालों में
Ajay Pandey Ji (Saaheb)
Tuesday, May 10, 2016
अजीब हैं दिल्ली के सीएम, इन तीन C पर डिपेंड केजरीवाल
देश में 29 राज्यों के मुख्यमंत्री हैं और दो केंद्रशासित प्रदेश ऐसे हैं, जहां मुख्यमंत्री होते हैं। यानी कुल मिलाकर देश में 31 मुख्यमंत्री हैं। अरविंद केजरीवाल इनमें मुख्यमंत्रियों में से एक हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि जितनी कवरेज अरविंद केजरीवाल नेशनल मीडिया में पाते हैं, उतना तो किसी राष्ट्रीय पार्टी को भी नसीब नहीं हो पाता।
स्थिति ये है कि कवरेज के मामले में आम आदमी पार्टी बीजेपी-कांग्रेस को जोरदार टक्कर देती है। नेशनल मीडिया को देखें तो ऐसा लगता है कि इस समय पूरे देश में सिर्फ आम आदमी पार्टी विपक्षी पार्टी है और केजरीवाल विपक्ष के नेता। ऐसा क्यों है? बिना किसी लाग-लपेट के तर्क के सहारे सीधे-सीधे अपनी बात रख रहा हूं।
1- ऐसा लगता है कि केजरीवाल ने ये तय कर रखा है कि हर वक्त मीडिया में बने रहना है। चाहे अच्छी वजह से हो, चाहे बुरी वजह से, इसलिए वो कभी स्याही, कभी चप्पल के बहाने भी खबरों में आ जाते हैं। जब कोई खबर नहीं होती, तो किसी दूसरी बड़ी खबर में अपनी टांग अड़ा देते हैं। चाहे इससे पार्टी का या प्रदेश की जनता का कोई लेना-देना हो या न हो। कम से कम इस बहाने खबरों में रहने का मौका मिल जाता है। अगस्ता हेलिकॉप्टर मामला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
2- केजरीवाल और उनकी टीम ने ये तय कर लिया है कि छापामार राजनीति करो। मतलब ये कि आरोप लगाओ और भाग जाओ। बाद की चिंता बाद में कर लेंगे। यही नहीं आरोप भी सीधे-सीधे आला नेताओं पर लगाओ। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि केजरीवाल टीवी की राजनीति करते हैं।
टीवी का फॉर्मूला ये है कि पल भर में खबरें बदल जाती हैं और खबर का फॉलोअप नहीं होता। लोग सब कुछ भूल जाते हैं, इसलिए केजरीवाल ये समझते हैं कि अगर आपने आरोप लगा भी दिए और सनसनीखेज तरीके से खबरें पैदा कर भी दीं, तो उस पर फॉलो अप करने वाला कोई नहीं होता। जनता भूल जाती है। शीला दीक्षित के खिलाफ सैकड़ों पन्नों के सबूत दिखाने वाले केजरीवाल अब शीला दीक्षित के खिलाफ ही दूसरों से सबूत मांग रहे हैं।
3-केजरीवाल और उनकी टीम ने अपनी सियासी जड़ों को मजबूत करने के लिए सबसे बड़ा और अचूक हथियार पत्रकारों और खासकर टीवी पत्रकारों को बनाया। इसका सबसे बड़ा सबूत ये है कि जब शुरुआती दिनों में वो राजनीति में उतरे, तो हर पत्रकार को ये सपना दिखाने में कामयाब हो गए कि वो भी राजनीति में आ सकते हैं, सांसद और विधायक भी बन सकते हैं। सबके लिए सुनहरे भविष्य को थाली में परोस दिया।
सच तो ये है कि उन दिनों हर पत्रकार अपने संसदीय सीट चुनने में लगा था। अब पत्रकार आम आदमी पार्टी के दम पर सपने देखेगा तो उसकी आलोचनात्मक समीक्षा क्या करेगा। मेरी इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण ये है कि केजरीवाल की टीम में ज्यादातर लोग पत्रकार ही हैं।
4-इस वक्त भी केजरीवाल ने कई चैनल और कई अखबार में आम आदमी पार्टी से जुड़े ऐसे समर्थक पैदा कर दिए हैं, जो पत्रकार कम उनके कैडर के तौर पर काम करते हैं। केजरीवाल सबसे पहले इन्हें खबर देते हैं। फिर जब इन पत्रकारों की खबरों को अखबार या चैनल चलाते हैं, तो यही पत्रकार उसे सोशल मीडिया में शेयर करते हैं। फिर केजरीवाल और उनकी टीम इन्हीं पत्रकारों और अखबार/चैनल की खबरें रिट्वीट करते हैं और आखिर में ये दावा करते हैं कि ये तो आपके अखबार या चैनल ने दिखाया है, लेकिन सच तो ये है कि सारी खबरें प्लांट होती हैं।
5-मार्केटिंग का एक बड़ा फंडा है। तीन नीतियों पर काम किया जाता है। किसी को अपनी बात मनाने के लिए तीन C का इस्तेमाल होता है। 1. CONVINCE 2. CONFUSE और 3. CORRUPT – टीम केजरीवाल मीडिया को अपने वश में करने के लिए इन तीनों नीतियों का सहारा लेती है। पहली कोशिश किस भी प्रोडक्ट की अच्छी बातें बताकर लोगों को आकर्षित करने की होती है। आम आदमी पार्टी भी अपने स्टाइल से लोगों को कन्वींस करने की कोशिश करती है ताकि बिना किसी परेशानी के खबरों में बने रहें।
दूसरा तरीका है कंफ्यूज करने का। उदाहरण के तौर पर आपने एक टुथपेस्ट का प्रचार देखा होगा जिसमें कहा जाता है- क्या आपके टूथपेस्ट में नमक है? ये अलग बात है कि लोगों को यही न पता हो कि नमक के टूथपेस्ट में होने से क्या फायदा है? टीम केजरीवाल इस तरीके का भी खूब इस्तेमाल करती है। मोदी के मार्कशीट की मांग करना कुछ ऐसा ही है।
दरअसल लोग समझ ही नहीं पाए इस मार्कशीट से किसी की प्यास बुझेगी, किसी का पेट भरेगा। लेकिन मीडिया में इतना प्रचारित कर दिया गया कि लोग दिल्ली की बाकी समस्या भूल गए और मीडिया में मार्कशीट की चर्चा होने लगी। केजरीवाल ने इस तरीके से लोगों को बेवकूफ बनाने की खूब कोशिश की।
तीसरा तरीका करप्ट करने का है। इसका उदाहरण ये है कि एक टूथपेस्ट के साथ दूसरा मुफ्त में दे दें। टीम केजरीवाल के बारे में इस तरह की बातें अक्सर सुनने को मिल रही हैं। अखबारों में बडे-बड़े विज्ञापन और नेशनल टीवी पर प्रचार में इतना पैसा बहाने के पीछे शायद यही कारण नजर आता है।
6- केजरीवाल इसके अलावा मीडिया को मैनेज करने के लिए धमकी का भी सहारा लेते हैं। एक अखबार के रिपोर्टर को सरेआम ट्वीटर पर धमकी, एक चैनल के खिलाफ अखबार में विज्ञापन छापना इसका सबसे बड़ा सबूत है।
बस ये समझ लीजिए कि जिस तरीके से केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने मीडिया में बने रहने के तरीके ढूंढ लिए हैं, और मीडिया सायास या अनायास इनके हाथों का खिलौना बनती जा रही है, वो खतरनाक है।
Thursday, November 19, 2015
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी!!!!
क्या खूब लिखा है किसी ने
आगे सफर था और पीछे हमसफर था..
रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता..
मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी..
ए दिल तू ही बता,उस वक्त मैं कहाँ जाता...
मुद्दत का सफर भी था और बरसो का हमसफर भी था
रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते....
यूँ समँझ लो,
प्यास लगी थी गजब की...
मगर पानी मे जहर था...
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते.
बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!
वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।।
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।
"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है!!
"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"..
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी!!!!
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया....
अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा. .......
आगे सफर था और पीछे हमसफर था..
रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता..
मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी..
ए दिल तू ही बता,उस वक्त मैं कहाँ जाता...
मुद्दत का सफर भी था और बरसो का हमसफर भी था
रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते....
यूँ समँझ लो,
प्यास लगी थी गजब की...
मगर पानी मे जहर था...
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते.
बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!
वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।।
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।
"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है!!
"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"..
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी!!!!
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया....
अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा. .......
Monday, March 31, 2014
सीधी सी बात ये हैं कि..........
देखिये सीधी सी बात ये हैं कि ..............................................
● मुझे वाकई फर्क नहीं पड़ता कि मोदी अम्बानी के एजेंट हैं या अडानी के क्यूंकि मुझे विश्वास हैं वो पाकिस्तान के एजेंट नहीं हैं |
● मुझे नहीं मालूम कि मैं मोदी को वोट क्यूँ दूंगा लेकिन मुझे अच्छी तरह मालुम हैं कि मुझे कांग्रेस व AAP को वोट क्यूँ नहीं देना हैं |
● मुझे नहीं मालूम कि मोदी गुजरात के तरह ही देश को चला पायेंगे या नहीं लेकिन ये यकीन हैं कि वो वादे करके 49 दिन में भागेंगे नहीं |
● मुझे ये भी नहीं मालूम कि मोदी हिंदुत्व को आगे ला पायेंगे या नहीं लेकिन इसका यकीन हैं वो इमाम बुखारी व तौकीर रजा जैसों से हाथ नहीं मिलायेंगे |
● मुझे वाकई नहीं मालूम कि कांग्रेस ने क्या-क्या वादे किए हैं लेकिन ये अच्छी तरह मालूम हैं कि मोदी ने कितने वादे निभाए हैं |
● मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मोदी के पास 56 इंच का सीना हैं या नहीं लेकिन ये पता हैं कि उनके सीने में 'दम' हैं 'दमा' नहीं |
● मुझे वाकई फर्क नहीं पड़ता कि मोदी अम्बानी के एजेंट हैं या अडानी के क्यूंकि मुझे विश्वास हैं वो पाकिस्तान के एजेंट नहीं हैं |
● मुझे नहीं मालूम कि मैं मोदी को वोट क्यूँ दूंगा लेकिन मुझे अच्छी तरह मालुम हैं कि मुझे कांग्रेस व AAP को वोट क्यूँ नहीं देना हैं |
● मुझे नहीं मालूम कि मोदी गुजरात के तरह ही देश को चला पायेंगे या नहीं लेकिन ये यकीन हैं कि वो वादे करके 49 दिन में भागेंगे नहीं |
● मुझे ये भी नहीं मालूम कि मोदी हिंदुत्व को आगे ला पायेंगे या नहीं लेकिन इसका यकीन हैं वो इमाम बुखारी व तौकीर रजा जैसों से हाथ नहीं मिलायेंगे |
● मुझे वाकई नहीं मालूम कि कांग्रेस ने क्या-क्या वादे किए हैं लेकिन ये अच्छी तरह मालूम हैं कि मोदी ने कितने वादे निभाए हैं |
● मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मोदी के पास 56 इंच का सीना हैं या नहीं लेकिन ये पता हैं कि उनके सीने में 'दम' हैं 'दमा' नहीं |
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