Monday, March 31, 2014

सीधी सी बात ये हैं कि..........

देखिये सीधी सी बात ये हैं कि ..............................................

● मुझे वाकई फर्क नहीं पड़ता कि मोदी अम्बानी के एजेंट हैं या अडानी के क्यूंकि मुझे विश्वास हैं वो पाकिस्तान के एजेंट नहीं हैं |

● मुझे नहीं मालूम कि मैं मोदी को वोट क्यूँ दूंगा लेकिन मुझे अच्छी तरह मालुम हैं कि मुझे कांग्रेस व AAP को वोट क्यूँ नहीं देना हैं |

● मुझे नहीं मालूम कि मोदी गुजरात के तरह ही देश को चला पायेंगे या नहीं लेकिन ये यकीन हैं कि वो वादे करके 49 दिन में भागेंगे नहीं |

● मुझे ये भी नहीं मालूम कि मोदी हिंदुत्व को आगे ला पायेंगे या नहीं लेकिन इसका यकीन हैं वो इमाम बुखारी व तौकीर रजा जैसों से हाथ नहीं मिलायेंगे |

● मुझे वाकई नहीं मालूम कि कांग्रेस ने क्या-क्या वादे किए हैं लेकिन ये अच्छी तरह मालूम हैं कि मोदी ने कितने वादे निभाए हैं |

● मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मोदी के पास 56 इंच का सीना हैं या नहीं लेकिन ये पता हैं कि उनके सीने में 'दम' हैं 'दमा' नहीं |

Thursday, January 23, 2014

वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी !!!!


# जब हम अपने शर्ट में हाथ छुपाते थे
और लोगों से कहते फिरते थे देखो मैंने
अपने हाथ जादू से हाथ गायब कर दिए
|

# जब हमें जब जब लगता की हम
विडियोगेम में हारने वाले हैं हम गेम
री-स्टार्ट कर देते थे |

# जब हमारे पास चार रंगों से लिखने
वाली एक पेन हुआ करती थी और हम
सभी के बटन को एक साथ दबाने
की कोशिश किया करते थे |

# जब हम दरवाज़े के पीछे छुपते थे
ताकि अगर कोई आये तो उसे डरा सके
लेकिन कभी कभी वहां से चल भी देते थे
क्यूंकि सामने से आने
वाला बंदा बड़ी देर कर
रहा होता था |

# जब आँख बंद कर सोने का नाटक करते
थे ताकि कोई हमें गोद में उठा के
बिस्तर तक पहुचा दे |

# सोचा करते थे की ये चाँद
हमारी साइकिल के पीछे पीछे
क्यों चल रहा हैं |

# On/Off वाले स्विच को बीच में
अटकाने की कोशिश किया करते थे |

# पानी की 2 बूंदों को खिड़की से
बहा के उनके बीच रेस लगवाया करते थे|

# फल के बीज को इस डर से नहीं खाते
थे की कहीं हमारे पेट में पेड़ न उग जाए |

# बर्थडे सिर्फ इसलिए मनाते थे
ताकि ढेर सारे गिफ्ट मिले |

# फ्रिज को धीरे से बंद करके ये जानने
की कोशिश करते थे की इसकी लाइट
कब बंद होती हैं |

# रूम में आते थे पर किसलिए आये
वो भूल जाते फिर बाहर जाके याद
करने की कोशिश करते |
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सच , बचपन में सोचते हम बड़े
क्यों नहीं हो रहे ?
और अब सोचते हम बड़े क्यों हो गए ?

ये दौलत भी ले लो..ये शोहरत भी ले लो ..भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन
का सावन ....वो कागज़
की कश्ती वो बारिश का पानी !!!!